शीत ऋतु में पशुओं की देखभाल — डेयरी फार्म और देसी पशुपालन के लिए आवश्यक सावधानियाँ
शीत ऋतु में पशुओं की देखभाल — डेयरी और देसी पशुपालन के लिए व्यावहारिक मार्गदर्शिका
ठंड का मौसम पशुओं की उत्पादकता, स्वास्थ्य और प्रजनन पर सीधा प्रभाव डालता है। सर्द हवाएँ, कोहरा और नमी से ठंड लगना, न्यूमोनिया, थनैला (मास्टाइटिस), भूख में कमी और दुग्ध उत्पादन घटने जैसी समस्याएँ बढ़ सकती हैं। थोड़ी सतर्कता और सही प्रबंधन से हम अपने पशुओं को सुरक्षित रख सकते हैं।
1) पशु-आवास (शेड) को गर्म, सूखा और हवा-रोधी रखें
शेड की छत और दीवारों में दरारें बंद रखें ताकि ठंडी हवा सीधे पशु पर न लगे। उत्तर/पश्चिम दिशा में विंडब्रेक (तिरपाल या टीन/बाँस की आड़) लगाएँ। फर्श सूखा रखें; पानी/मल-मूत्र की निकासी सही रहे।
2) बिछावन (बेडिंग) बढ़ाएँ
पुआल/भूसे की 10–15 सेमी मोटी परत बिछाएँ और रोज़ धूप लगवाकर सूखा बिछावन वापिस बिछाएँ। गीला बिछावन थनैला और न्यूमोनिया का बड़ा कारण बनता है।
3) गुनगुना पानी, पर्याप्त मात्रा में
ठंडे पानी से पशु कम पीते हैं और दूध घटता है। सुबह-शाम हल्का गुनगुना पानी दें, दिन में 3–4 बार पानी उपलब्ध रखें। नमक की ढेल (साल्ट-लिक) शेड में टाँग दें।
4) ऊर्जा और प्रोटीन युक्त आहार दें
सर्दी में ऊर्जा-खपत बढ़ती है, इसलिए आहार में ऊर्जा (मक्का, जौ, चारा), प्रोटीन (सरसों/सोयाबीन खली, चने का चूरा) और उत्तम सूखा-चारा (गुणवत्तायुक्त पुआल के साथ हरा चारा) संतुलित रखें। औसतन 10 लीटर/दिन दूध देने वाली गाय के लिए 3–4 कि.ग्रा. संतुलित दाना उपयुक्त रहता है; हरे चारे में बरसीम/जई बढ़ाएँ।
5) मिनरल मिक्स और विटामिन
दैनिक दाने में 30–50 ग्राम मिनरल-मिश्रण और विटामिन A, D, E का सपोर्ट (पशु-चिकित्सक की सलाह अनुसार) दें। ठंड में सूक्ष्म-पोषक तत्वों की कमी तेजी से उत्पादन घटाती है।
6) थनैला (मास्टाइटिस) से बचाव
दूध दुहने से पहले गुनगुने पानी से थन साफ़ करें, बाद में थन को सुखाकर स्वच्छ कपड़े से पोंछें। ठंडी हवा से थन को बचाएँ, गीला फर्श/बिछावन तुरंत बदलें। दूध में जमे हुए कण, लाली या दर्द दिखे तो तुरंत पशु-चिकित्सक से संपर्क करें।
7) श्वसन-रोग और ठंड लगने से बचाव
सीधी ठंडी हवा से पशु को न रखें; सुबह की कड़कड़ाती ठंड में लंबा स्नान न कराएँ। खाँसी, नाक से पानी, तेज़ श्वास, सुस्ती या कंपकंपी दिखे तो उपचार में देरी न करें।
8) टीकाकरण और कृमिनाशक
एच.एस., बी.क्यू., एफ.एम.डी. आदि का टीकाकरण स्थानीय कार्यक्रम अनुसार समय पर कराएँ। बारिश के बाद/सर्दी की शुरुआत में कृमिनाशक देना उपयोगी रहता है—दवा का चयन वजन और पशु-चिकित्सक की सलाह से करें।
9) गर्भित पशु और बछड़े
अंतिम 2–3 महीनों में गर्भित पशु को भीड़-भाड़ से दूर रखें, फिसलन न होने दें। प्रसव-स्थान गर्म और सूखा रखें। नव-जात बछड़े को तुरंत सुखाकर गर्म स्थान पर रखें और 1 घंटे के भीतर पहला गाढ़ा दूध (खीस/कोलोस्ट्रम) अवश्य पिलाएँ। नाभि की सफ़ाई/डिपिंग करें और गुनगुना पानी उपलब्ध रखें।
10) खुर और त्वचा-देखभाल
कीचड़ और गीला फर्श खुर-रोग बढ़ाते हैं; नियमित सफ़ाई और समतल, सूखी जगह दें। धूप में 20–30 मिनट खड़ा करना विटामिन-D और रोग-प्रतिरोधकता के लिए लाभदायक है।
11) कामकाजी/बुज़ुर्ग पशु
दुबले/बुज़ुर्ग पशुओं को रात में कंबल/जूट की बोरी से ढकना मददगार है। लंबी दूरी के काम से पहले और बाद में आराम एवं गुनगुना पानी दें।
12) रोज़ का त्वरित चेकलिस्ट
क्या बिछावन सूखा है? क्या हवा सीधे नहीं लग रही? क्या पानी गुनगुना और पर्याप्त मिला? क्या पशु ने सामान्य मात्रा में चारा खाया/जुगाली की? क्या दूध की मात्रा अचानक नहीं घटी? कोई खाँसी/बुखार/दर्द तो नहीं?—इन 6 बिंदुओं को प्रतिदिन जाँचें।
सावधानी: स्थानीय जलवायु, नस्ल, उम्र और उत्पादन के अनुसार आहार/दवा की मात्रा बदल सकती है। हमेशा नज़दीकी पशु-चिकित्सक या परावेट से सलाह लेकर ही दवा/टीकाकरण शेड्यूल तय करें।