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दुग्ध उत्पादन बढ़ाने के प्राकृतिक उपाय – चारे, प्रबंधन और घरेलू नुस्खों पर संपूर्ण मार्गदर्शिका

Fodder • 26 Oct 2025 • 6 min read
दुग्ध उत्पादन बढ़ाने के प्राकृतिक उपाय

भारत सदियों से “दूध और दही की धरती” कहा जाता है। हर घर में गाय या भैंस का होना समृद्धि का प्रतीक रहा है। लेकिन आधुनिक समय में बढ़ते खर्च, घटते हरे चारे और रासायनिक दवाओं की अधिकता ने डेयरी किसानों के लिए चुनौतियाँ बढ़ा दी हैं। ऐसे में अब समय है कि हम दुग्ध उत्पादन के प्राकृतिक और स्थायी उपायों को फिर से अपनाएँ।


🐄 1. दूध कम होने के प्रमुख कारण

किसान को पहले यह समझना जरूरी है कि गाय या भैंस का दूध क्यों घटता है। जब तक कारण पता न हो, समाधान भी अधूरा रहता है।

  • असंतुलित आहार: पशु के शरीर को पर्याप्त ऊर्जा, प्रोटीन, खनिज और विटामिन न मिलना।
  • गलत दुग्धपान प्रबंधन: थन की सफाई, दुग्ध दोहन समय और तकनीक में लापरवाही।
  • तनाव या गर्मी: अधिक तापमान, मक्खी-मच्छर, या शोर से पशु तनाव में आता है।
  • रोग और परजीवी: आंतरिक/बाहरी कृमि, थन की सूजन (मास्टाइटिस) या पाचन गड़बड़ी।
  • दूध छुड़ाने या प्रसव के बाद उचित आहार न मिलना।

इन कारणों को ध्यान में रखकर यदि किसान प्राकृतिक ढंग से आहार, पर्यावरण और देखभाल में सुधार करे तो बिना दवा या हार्मोन के भी दूध उत्पादन में 30–40% वृद्धि संभव है।


🌱 2. हरा चारा – दूध बढ़ाने का पहला प्राकृतिक स्रोत

“जैसा भोजन, वैसा दूध।” यह सिद्धांत पशुपालन में सौ प्रतिशत सही बैठता है। दूध बढ़ाने के लिए सबसे जरूरी है कि गाय या भैंस को पौष्टिक और हरा चारा मिले।

मुख्य हरे चारे की किस्में:

  • बरसीम (Lucerne): सर्दियों का राजा चारा। प्रोटीन 18–20%, पाचन में आसान।
  • ज्वार-बाजरा: गर्मी में उपयोगी, फाइबर और ऊर्जा से भरपूर।
  • नेपियर घास (CO-4, CO-5): सालभर हरा चारा उपलब्ध, प्रति एकड़ 300–400 क्विंटल तक उत्पादन।
  • सुबबुल (Leucaena): 25% प्रोटीन तक। पर अधिक मात्रा से बचें (माइमोसिन तत्व)।
  • सहजन (Moringa): “मिल्क बूस्टर” पेड़। इसकी पत्तियाँ दूध वसा बढ़ाती हैं।

हरा चारा खिलाने की सही मात्रा:

प्रत्येक 100 किलो वजन पर लगभग 8–10 किलो हरा चारा प्रतिदिन देना चाहिए। दूध देने वाली गाय के लिए कुल आहार का 60% हिस्सा हरा होना चाहिए।


🌾 3. सूखा चारा और घर का बना सस्ता मिश्रण

हरे चारे की कमी में सूखा चारा एक आवश्यक विकल्प है। लेकिन केवल सूखा भूसा खिलाने से दूध घटता है, इसलिए इसे पौष्टिक बनाने के लिए घरेलू फॉर्मूला अपनाएँ।

भूसा सुधार (Urea Treatment):

100 किलो सूखे भूसे में 4 किलो यूरिया और 50 लीटर पानी मिलाकर 21 दिन बंद ढेर में रखें। इससे भूसे में 40% अधिक पचने योग्य प्रोटीन बनता है।

घरेलू फीड मिश्रण (Low-cost formula):

• गेहूं चोकर – 40%
• सरसों खली – 20%
• मक्का पिसा – 30%
• मिनरल मिक्सचर – 2%
• गुड़ पाउडर – 3%
• मेथी पाउडर – 1%

यह मिश्रण दूध की मात्रा और गुणवत्ता दोनों बढ़ाता है।


🍀 4. औषधीय पौधे (Herbal Additives) जो दूध बढ़ाते हैं

भारत के पारंपरिक पशु-चिकित्सा ग्रंथों में कई ऐसे पौधों का उल्लेख है जो प्राकृतिक रूप से दूध स्राव को बढ़ाते हैं और थन स्वास्थ्य को भी बनाए रखते हैं।

मुख्य हर्बल पौधे:

पौधावैज्ञानिक नामप्रभाव
मेथीTrigonella foenum-graecumदूध बढ़ाने वाला, पाचन सुधारक
सहजनMoringa oleiferaप्रोटीन और कैल्शियम का स्रोत
गिलोयTinospora cordifoliaरोग प्रतिरोधकता बढ़ाती है
अश्वगंधाWithania somniferaतनाव कम करती, भूख बढ़ाती
हल्दीCurcuma longaथन की सूजन घटाती
इसबगोल/भुजंगPlantago ovataपाचन में मददगार

इन पौधों को सुखाकर पाउडर बना लें और प्रतिदिन 20–30 ग्राम चारे में मिलाएँ। इससे दूध उत्पादन 15–20% तक बढ़ता है और दवा की जरूरत घटती है।


🐮 5. नस्ल चयन – उत्पादन और अनुकूलता दोनों देखें

हर क्षेत्र की जलवायु और मिट्टी के अनुसार गाय-भैंस की नस्लें अलग उपयुक्त होती हैं। दूध बढ़ाने के लिए किसान को अपनी स्थानीय जलवायु के अनुसार नस्ल चुननी चाहिए।

देशी गायों की प्रमुख नस्लें:

  • साहीवाल – उच्च दूध उत्पादन (8–15 लीटर/दिन)
  • गिर – गर्म इलाकों में उपयुक्त, 10–12 लीटर/दिन
  • थारपारकर – सूखे क्षेत्र में उपयुक्त, 6–8 लीटर/दिन
  • लाल सिंधी – रोग प्रतिरोधकता में श्रेष्ठ
  • राठी – राजस्थान व हरियाणा में लोकप्रिय, 8–10 लीटर/दिन

भैंसों में:

  • मुर्राह – उच्च फैट वाला दूध (7–10%)
  • मेहसाणा – गुजरात क्षेत्र में उपयुक्त
  • नागपुरी – शुष्क क्षेत्रों के लिए अनुकूल

🪣 6. दुग्ध दोहन (Milking) की सही विधि

दूध निकालने की गलत तकनीक से थन की नसों को नुकसान होता है और दूध स्राव घटता है।

प्राकृतिक तरीके से दूध बढ़ाने के लिए:

  • दूध दोहन दिन में 2 बार निश्चित समय पर करें।
  • थन को गर्म पानी और नीम पानी से धोएं।
  • दूध निकालते समय शांत माहौल रखें।
  • बछड़ा पास में रहे तो दूध स्राव बढ़ता है।
  • दूध निकालने के बाद थन पर सरसों तेल हल्के हाथों से मलें।

यह साधारण उपाय दूध उत्पादन को 10–15% तक बढ़ा सकते हैं।


🔥 7. तनाव (Stress) घटाएँ – यह भी दूध बढ़ाने का कारक है

पशु में तनाव (Heat, Noise, Overcrowding) सीधे दूध उत्पादन घटाता है।

तनाव कम करने के उपाय:

  • गर्मी में शेड का तापमान 25°C से अधिक न हो।
  • धूप में छाया और पानी की व्यवस्था करें।
  • मच्छर-मक्खी नियंत्रण के लिए नीम धुआँ या लेमनग्रास स्प्रे।
  • रात को प्रकाश और संगीत का हल्का माहौल रखें।

एक शांत पशु ही ज्यादा दूध देता है।


💧 8. पानी – दूध का 85% हिस्सा!

दूध का लगभग 85% भाग पानी होता है, इसलिए यदि पशु को पर्याप्त और स्वच्छ पानी न मिले तो दूध कम होना तय है।

  • प्रत्येक 100 किलो वजन पर प्रतिदिन 50–60 लीटर पानी देना चाहिए।
  • पानी स्वच्छ, बिना बदबू और क्लोरीन रहित हो।
  • गर्मियों में दिन में 3–4 बार पानी बदलें।

🌿 9. पंचगव्य और देसी टॉनिक से दूध बढ़ाने के उपाय

पंचगव्य (दूध, दही, घी, गोमूत्र, गोबर) से बने टॉनिक का प्रयोग दूध बढ़ाने में अत्यंत उपयोगी है।

घरेलू पंचगव्य टॉनिक विधि:

• गाय का ताजा गोमूत्र – 1 लीटर
• गोबर – 500 ग्राम
• दूध – 200 ml
• दही – 200 ml
• घी – 100 ml
इन सबको मिट्टी के पात्र में मिलाकर 5 दिन तक छाया में रखें। 5वें दिन से 50 ml यह मिश्रण 1 लीटर पानी में मिलाकर पशु को दें।

यह टॉनिक थन की ग्रंथियों को सक्रिय करता है और प्राकृतिक हार्मोन स्राव को बढ़ाता है।


🌾 10. दूध वसा (Fat %) बढ़ाने के प्राकृतिक उपाय

  • सहजन पत्तियाँ – रोज 500 ग्राम तक।
  • गुड़ + सरसों तेल (50g+10ml) चारे में मिलाएँ।
  • भुना चना + अलसी दाना (50g)।
  • थन की हल्की मालिश सरसों तेल से करें।
  • भैंसों को दिन में 2 बार तालाब में स्नान कराएँ।

इन उपायों से 0.5–1.0% तक फैट बढ़ता है जो सीधे बाजार मूल्य पर असर डालता है।


📋 11. प्राकृतिक रोग नियंत्रण – दवाओं से दूरी

रोगप्राकृतिक उपचार
अफरासरसों तेल + अदरक रस (20ml)
थन सूजनहल्दी + एलोवेरा जेल लेप
पाचन खराबअजवाइन + सौंफ काढ़ा
भूख न लगनागिलोय रस 50ml
त्वचा रोगनीम पानी से स्नान

इन उपचारों से दवाओं की लागत घटती है और दूध उत्पादन बना रहता है।


💰 12. आर्थिक दृष्टि – कम खर्च में अधिक लाभ कैसे?

प्राकृतिक प्रबंधन से किसान निम्नलिखित बचत कर सकता है:

  • फीड पर खर्च 25–40% तक कम।
  • दवाओं और हार्मोन इंजेक्शन की जरूरत लगभग शून्य।
  • थन रोग और अफरा जैसे रोग कम होने से निरंतर दूध उत्पादन।
  • गोबर और मूत्र से खाद व बायोगैस का अतिरिक्त लाभ।

एक गाय का मासिक उदाहरण:

आइटमखर्च (₹)आय (₹)
चारा2,800-
पूरक और हर्बल300-
दूध बिक्री-14,000
गोबर खाद-1,500
कुल3,10015,500
शुद्ध लाभ₹12,400/माह

🏡 13. सफल पशुपालकों के उदाहरण

  • संजय चौधरी (हरियाणा): 10 देशी गायों से जैविक दूध बेचकर ₹1.5 लाख/माह आय।
  • गोपाल गोशाला (राजस्थान): सहजन व बरसीम आधारित चारा मॉडल से 30% दूध वृद्धि।
  • कर्नाटक: गिलोय टॉनिक का नियमित प्रयोग कर दूध में 1% फैट वृद्धि।

🔚 निष्कर्ष

प्राकृतिक उपाय न केवल सस्ते और सुरक्षित हैं, बल्कि पर्यावरण और उपभोक्ता दोनों के लिए हितकारी हैं।

याद रखिए: “दूध बढ़ाने की असली कुंजी है – पौष्टिक चारा, स्वच्छ वातावरण और शांत पशु।”

यदि किसान अपने पशु को परिवार के सदस्य की तरह देखभाल करे, तो बिना किसी रासायनिक दवा या खर्च के भी दूध उत्पादन में आश्चर्यजनक सुधार संभव है।

स्वस्थ पशु ही किसान की सबसे बड़ी पूँजी है।


✍️ लेखक: डॉ. मुकेश स्वामी (पशु चिकित्सक एवं संपादक – Pashupalan.co.in)


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