पशुओं में आम बीमारियाँ और प्रारंभिक पहचान के उपाय – हर पशुपालक के लिए जरूरी गाइड
पशुओं में आम बीमारियाँ और प्रारंभिक पहचान के उपाय – हर पशुपालक के लिए जरूरी गाइड
भारत जैसे कृषि प्रधान देश में पशुपालन केवल आय का स्रोत नहीं बल्कि जीवन का आधार है। एक स्वस्थ पशु ही दूध, गोबर, गोमूत्र, शक्ति और संतान देता है। लेकिन अक्सर पशुपालक समय रहते बीमारियों की पहचान नहीं कर पाते, जिसके कारण नुकसान बढ़ जाता है। इस लेख में हम जानेंगे कि पशुओं में होने वाली प्रमुख बीमारियाँ कौन-सी हैं, उन्हें कैसे जल्दी पहचाना जा सकता है और उनके बचाव के व्यावहारिक तरीके क्या हैं।
🐮 1. खुरपका-मुंहपका (Foot and Mouth Disease – FMD)
यह बीमारी गाय, भैंस, बकरी और सूअर सभी में फैल सकती है। वायरस द्वारा फैलने वाली यह रोग अत्यंत संक्रामक है।
प्रारंभिक लक्षण:
- मुंह, जीभ, होंठ, नाक और पैरों के खुरों पर पानी भरे फफोले।
- लार का अत्यधिक गिरना, खाना छोड़ देना।
- पैरों में सूजन, चलने में दर्द, दूध अचानक कम हो जाना।
बचाव के उपाय:
- हर 6 महीने में FMD वैक्सीन लगवाएँ।
- बीमार पशु को अलग रखें और चारा-पानी की वस्तुएँ साझा न करें।
- नमक-पानी से मुँह धोएँ, घावों पर बोरिक एसिड का लेप करें।
🐂 2. गलघोंटू (Haemorrhagic Septicaemia – HS)
यह रोग मुख्यतः मानसून के समय फैलता है और भैंसों में अधिक देखा जाता है। इसका जीवाणु Pasteurella multocida है।
प्रारंभिक लक्षण:
- गर्दन और गले में सूजन, साँस लेने में कठिनाई।
- तेज बुखार (106°F तक)।
- पशु बैठ जाता है और जल्दी उठ नहीं पाता।
बचाव:
- हर साल बरसात से पहले HS वैक्सीन अवश्य लगवाएँ।
- बीमार पशु को ठंडे स्थान पर रखें, पानी पर्याप्त दें।
- संदेह की स्थिति में तुरंत पशु चिकित्सक को बुलाएँ।
🐃 3. ब्लैक क्वार्टर (Black Quarter – BQ)
यह रोग Clostridium chauvoei जीवाणु से होता है। विशेषकर युवा गाय-भैंसों में पाया जाता है।
पहचान के लक्षण:
- पैर या कंधे में सूजन, दबाने पर गैस की आवाज।
- तेज बुखार, कमजोरी, भूख कम लगना।
- तेजी से मौत (24–48 घंटे में)।
बचाव:
- BQ वैक्सीन हर साल मई-जून में लगवाएँ।
- बारिश में कीचड़ या गंदे स्थानों में पशु न चराएँ।
- बीमार पशु का शव खुले में न फेंकें, मिट्टी में दबाएँ।
🌡️ 4. बुखार और संक्रमण संबंधी रोग
गर्मी या संक्रमण से पशुओं में सामान्य बुखार भी हो सकता है। यह कभी-कभी खतरनाक बीमारी की शुरुआत का संकेत होता है।
लक्षण:
- खाना छोड़ देना, पानी कम पीना।
- नाक से पानी आना, आँखें सुस्त पड़ना।
- शरीर गर्म लगना या कान ठंडे होना।
पहचान:
थर्मामीटर से तापमान लें। गाय-भैंस का सामान्य तापमान 101.5°F से 102.5°F तक होता है।
उपाय:
- पानी और इलेक्ट्रोलाइट्स देते रहें।
- डॉक्टर की सलाह पर एंटीबायोटिक या पैरासिटामोल इंजेक्शन दें।
🐐 5. अफरा (Bloat / Tympany)
अफरा तब होता है जब पशु के पेट में गैस भर जाती है। यह गाय-भैंसों में अचानक मौत का कारण भी बन सकता है।
प्रारंभिक लक्षण:
- बाएं तरफ पेट फूला हुआ दिखना।
- पशु बैठना-उठना बंद कर देता है, बेचैनी दिखाता है।
- डकार नहीं आती, साँस लेने में कठिनाई।
तत्काल उपाय:
- पशु को खड़ा रखें और हल्का टहलाएँ।
- मुंह से पानी में तेल (सरसों/मूंगफली) डालें।
- गंभीर स्थिति में डॉक्टर से trocar puncture करवाएँ।
🐄 6. दूध ज्वर (Milk Fever)
यह रोग खासतौर पर अधिक दूध देने वाली गायों में बछड़ा जनने के तुरंत बाद होता है। शरीर में कैल्शियम की कमी इसका प्रमुख कारण है।
लक्षण:
- बछड़ा जनने के कुछ घंटे बाद उठ नहीं पाना।
- कान ठंडे, आँखें सुस्त, शरीर में कंपन।
- पैरों में कमजोरी और बार-बार लेटना।
उपचार और बचाव:
- डॉक्टर की देखरेख में कैल्शियम बोरोग्लूकोनेट इंजेक्शन।
- प्रसव से पहले संतुलित आहार और मिनरल मिक्सचर दें।
- अचानक ठंड या बारिश से पशु को बचाएँ।
🐜 7. टिक-मक्खी और खटमल संक्रमण
गर्मियों में यह समस्या अधिक होती है। यह रक्त-चूसक परजीवी होते हैं जो शरीर में रोग फैलाते हैं।
पहचान के संकेत:
- त्वचा पर छोटे-छोटे लाल दाने, खुजली।
- दूध उत्पादन में कमी, बेचैनी।
- कभी-कभी कान या पूँछ के पास टिक चिपके रहते हैं।
नियंत्रण के उपाय:
- हर 15 दिन में इक्थियोस या डेल्टामेथ्रिन स्प्रे करें।
- पशुशाला साफ-सुथरी और धूपदार रखें।
- पशु को नियमित रूप से ब्रश करें।
🧫 8. पेट के कीड़े (Internal Parasites)
ये धीमी गति से नुकसान पहुंचाते हैं और अक्सर नजर नहीं आते।
लक्षण:
- धीरे-धीरे वजन घटना।
- बाल रूखे और बेजान दिखना।
- दूध में कमी और भूख घट जाना।
उपाय:
- हर 6 महीने में कीड़ा नाशक दवा (Albendazole / Fenbendazole) दें।
- गर्मियों और बरसात में विशेष ध्यान दें।
- गोबर और पानी का जमाव न होने दें।
🦠 9. मास्टाइटिस (थन की सूजन)
यह डेयरी पशुओं में सबसे आम रोग है, जो थनों में बैक्टीरिया के संक्रमण से होता है।
पहचान के लक्षण:
- थन गर्म और कठोर हो जाता है।
- दूध पतला या जमने-सा दिखता है।
- पशु दर्द के कारण दूध निकालने नहीं देता।
बचाव:
- दूध निकालने से पहले और बाद में थनों की सफाई करें।
- सूखे थनों पर आयोडीन डिपिंग करें।
- संक्रमण होने पर तुरंत एंटीबायोटिक थेरेपी शुरू करें।
🐃 10. बवासीर या मूत्र-संबंधी समस्या
यह रोग अधिकतर गर्मियों या सूखे मौसम में देखा जाता है। पानी की कमी और गरम आहार इसके कारण होते हैं।
लक्षण:
- पशु बार-बार पेशाब के लिए उठता है लेकिन कम मात्रा निकलती है।
- कभी-कभी पेशाब में खून आता है।
- कमर झुका कर चलना।
उपाय:
- पानी की पर्याप्त मात्रा दें।
- नमक, खली या कच्चे अनाज की मात्रा घटाएँ।
- डॉक्टर की सलाह पर यूरिन फ्लो बढ़ाने वाली दवा दें।
🥛 11. पाचन विकार और कब्ज
चारे में अचानक बदलाव या सूखा-पुराना चारा देने से पाचन समस्या होती है।
पहचान:
- पशु बार-बार लेटता-उठता है।
- गोबर सूखा या सख्त, कभी-कभी नहीं आता।
- भूख न लगना।
उपाय:
- चारे में हरा-सूखा संतुलन रखें।
- दिन में दो बार हल्की सैर कराएँ।
- जरूरत पड़ने पर आयुर्वेदिक टॉनिक या लूजेन दवा दें।
💉 12. रोगों से बचाव के लिए टीकाकरण शेड्यूल
| रोग | टीका | समय/अवधि |
|---|---|---|
| खुरपका-मुंहपका (FMD) | FMD Vaccine | हर 6 माह में |
| गलघोंटू (HS) | HS Vaccine | हर वर्ष मई-जून |
| ब्लैक क्वार्टर (BQ) | BQ Vaccine | हर वर्ष मई-जून |
| ब्रुसेलोसिस | Brucella Vaccine | 6–8 माह की मादा बछिया को |
| रेबीज | Anti-Rabies Vaccine | हर वर्ष |
टीकाकरण हमेशा प्रशिक्षित पशु चिकित्सक की देखरेख में कराएँ और रिकॉर्ड में तारीख लिखें।
🧭 13. बीमार पशु की देखभाल के सामान्य नियम
- बीमार पशु को अलग बाड़े में रखें।
- चारा और पानी साफ बर्तनों में दें।
- छाया और हवा का उचित प्रबंध रखें।
- गोबर और मूत्र नियमित साफ करें।
- डॉक्टर के बताए अनुसार दवा की पूरी डोज दें।
🧘♂️ 14. घरेलू और प्राकृतिक उपचार (सहायक उपाय)
कुछ हल्के मामलों में घरेलू उपचार भी सहायक होते हैं, परंतु गंभीर स्थिति में हमेशा डॉक्टर से सलाह लें।
- लार गिरने पर: नारियल पानी या सौंफ का काढ़ा दें।
- पाचन खराब होने पर: 50 ग्राम अजवाइन + गुड़ गर्म पानी में।
- अफरा की शुरुआत में: सरसों तेल + पानी धीरे-धीरे दें।
- बुखार में: तुलसी और गिलोय का अर्क।
🌍 15. निष्कर्ष – स्वस्थ पशु ही समृद्ध किसान
पशु की बीमारी केवल आर्थिक नुकसान नहीं, बल्कि पूरे परिवार की आजीविका पर असर डालती है। इसलिए हर पशुपालक को रोग-पहचान, टीकाकरण और साफ-सफाई की जानकारी होना जरूरी है। समय पर पहचान और उपचार से अधिकांश बीमारियाँ आसानी से नियंत्रित की जा सकती हैं।
याद रखें – “पशु बोले नहीं, पर शरीर संकेत जरूर देता है।” उन संकेतों को पहचानना ही एक सफल पशुपालक की पहचान है।
✍️ लेखक: डॉ. मुकेश स्वामी (पशु चिकित्सक एवं संपादक, Pashupalan.co.in)