पशु चारे की बढ़ती कीमतों में समाधान – वैकल्पिक चारा उत्पादन तकनीकें
पशु चारे की बढ़ती कीमतों में समाधान – वैकल्पिक चारा उत्पादन तकनीकें
आज पशुपालन क्षेत्र की सबसे बड़ी चुनौती पशु चारे की बढ़ती कीमतें हैं। जब तक किसान के पास सस्ता और पौष्टिक चारा नहीं होगा, तब तक दूध उत्पादन और पशुओं की सेहत दोनों पर असर पड़ेगा। वर्तमान आर्थिक स्थिति में, हर किसान को यह समझना जरूरी है कि कैसे वह अपने खेत, घर या गौशाला में स्वयं चारा उत्पादन कर सकता है और किस तरह वैकल्पिक तकनीकों से लागत घटा सकता है।
🐄 1. चारे की समस्या क्यों गंभीर होती जा रही है?
भारत में करीब 60% किसान छोटे या सीमांत किसान हैं। उनके पास भूमि सीमित है, और जो थोड़ी भूमि है, वह अधिकतर अनाज या सब्जी उत्पादन में लग जाती है। इस कारण पशुओं के लिए पर्याप्त हरा चारा नहीं उगाया जा पाता। साथ ही, सूखे मौसम, बारिश की अनिश्चितता और श्रम की कमी से स्थिति और बिगड़ जाती है।
- पशु चारे की लागत कुल दूध उत्पादन लागत का लगभग 65-70% होती है।
- हर साल औसतन 35% हरे चारे और 11% सूखे चारे की कमी दर्ज की जाती है।
- जनसंख्या बढ़ने और जमीन घटने से चारा संकट और गहराता जा रहा है।
🌱 2. हरा चारा – सस्ता और पौष्टिक विकल्प
हरा चारा हर प्रकार के पशु के लिए सर्वोत्तम होता है। इसमें प्रोटीन, मिनरल्स और विटामिन्स भरपूर मात्रा में होते हैं। किसान चाहे तो कम भूमि पर भी निरंतर हरे चारे का उत्पादन कर सकता है।
उदाहरण: एक एकड़ भूमि से सालभर हरा चारा कैसे मिल सकता है?
- गर्मी का मौसम: मक्का, बाजरा, नेपियर, गिनी घास
- बरसात का मौसम: बरसीम, लोबलिया, ज्वार
- सर्दी का मौसम: ओट, अल्फाल्फा, बरसीम
यदि किसान मल्टी-कट नेपियर या CO-4, CO-5 जैसी प्रजातियाँ उगाए तो एक कटाई के बाद पुनः वृद्धि होती है। यह साल में 6–8 कटाई तक उत्पादन देती हैं।
🌾 3. सूखा चारा (Dry Fodder) और उसका उपयोग
सूखे चारे का महत्व तभी समझ में आता है जब हरे चारे की कमी होती है। फसल कटने के बाद खेत में बची फसल का डंठल (भूसा, पराली, पुआल) सूखे चारे के रूप में उपयोगी होता है।
सस्ते और उपयोगी सूखे चारे के स्रोत:
- गेहूं का भूसा
- चना और मूंग की पत्ती (फली बाद बचा हिस्सा)
- मक्का और ज्वार के सूखे डंठल
- धान की पराली (ट्रीटमेंट के बाद उपयोग योग्य)
धान की पराली में सिलिका अधिक होती है जिससे यह पचने में कठिन होती है। इसे urea treatment से 15 दिन तक बंद टंकी में रखकर उपयोगी बनाया जा सकता है।
प्रक्रिया: 5% यूरिया घोलकर पराली पर छिड़कें, प्लास्टिक कवर से बंद करें, 15 दिन बाद उपयोग करें। इससे पराली मुलायम, पौष्टिक और स्वादिष्ट हो जाती है।
🌿 4. साइलेंज (Silage) – हर किसान के लिए क्रांतिकारी तकनीक
साइलेंज हरे चारे को लंबे समय तक सुरक्षित रखने की तकनीक है। इसमें चारे को ऑक्सीजन रहित वातावरण में किण्वन के लिए रखा जाता है। इससे वह महीनों तक खराब नहीं होता और उसका पौष्टिक मूल्य बना रहता है।
साइलेंज बनाने के प्रमुख फायदे:
- 6–12 महीने तक चारा खराब नहीं होता।
- बारिश या सूखे के मौसम में भी उपलब्ध रहता है।
- पशुओं को स्वादिष्ट लगता है, दूध उत्पादन बढ़ता है।
साइलेंज बनाने की प्रक्रिया:
- हरे चारे (मक्का/ज्वार/नेपियर) को काटकर 1–2 इंच टुकड़ों में काटें।
- चारे में 1% गुड़ या शीरा मिलाएँ।
- इसे गड्ढे या ड्रम में दबाकर रखें ताकि हवा न रहे।
- प्लास्टिक शीट से अच्छी तरह सील करें।
- 30–40 दिन बाद तैयार साइलेंज उपयोग करें।
आजकल किसान छोटे-छोटे “साइलेंज बैग” बनाकर बेच भी रहे हैं, जो 10–20 किलो के पैक में उपलब्ध होते हैं।
💧 5. हाइड्रोपोनिक चारा उत्पादन – आधुनिक और जगह बचाने वाली तकनीक
Hydroponic Fodder वह तकनीक है जिसमें मिट्टी की आवश्यकता नहीं होती। बीजों को पानी और पोषक घोल के साथ ट्रे में अंकुरित किया जाता है, जिससे 6–8 दिन में हरा चारा तैयार हो जाता है।
मुख्य लाभ:
- केवल 10×10 फीट कमरे में प्रतिदिन 50–60 किलो हरा चारा तैयार किया जा सकता है।
- पानी की बचत लगभग 90% तक।
- बारिश या सूखा मौसम भी बाधा नहीं बनता।
- पौष्टिकता 1.5 गुना अधिक होती है।
आवश्यक सामग्री: ट्रे, मक्का/जौ के बीज, स्प्रे बोतल, शेड नेट या कंटेनर, टाइमर आधारित फॉग सिस्टम।
यह तकनीक डेयरी फार्म, गौशाला और सीमित भूमि वाले किसानों के लिए वरदान साबित हो रही है।
🍃 6. वैकल्पिक चारा फसलें (Alternative Fodder Crops)
कई बार पारंपरिक फसलें (जैसे बरसीम या नेपियर) हर जगह सफल नहीं होतीं। ऐसे में क्षेत्र के अनुसार अन्य पौधों को अपनाया जा सकता है।
- मोरिंगा (सहजन) पत्तियाँ: उच्च प्रोटीन स्रोत (25–30%), तेजी से बढ़ने वाली, सूखा सहनशील।
- सुबबुल (Leucaena leucocephala): पेड़ आधारित चारा, बार-बार काटा जा सकता है।
- ग्लिरिसिडिया: हेज फार्मिंग के लिए उपयोगी, मृदा-सुधारक भी।
- कसावा (टैपिओका): पत्तियाँ पशुओं के लिए पौष्टिक हैं।
- अजवाइन/मेथी/बरसीम मिक्स: फॉडर मिक्सचर से प्रोटीन बढ़ता है।
🚜 7. मिश्रित चारा उत्पादन मॉडल (Integrated Fodder Model)
कई राज्यों में अब किसान इंटीग्रेटेड फॉडर फार्मिंग अपना रहे हैं। यानी खेत का एक भाग हरे चारे के लिए, दूसरा सूखे चारे के लिए और तीसरा पेड़ आधारित चारे के लिए रखा जाता है।
एक उदाहरण मॉडल (1 एकड़):
- 0.5 एकड़ – नेपियर या ज्वार (हरा चारा)
- 0.3 एकड़ – बरसीम / ओट (सर्दी का हरा चारा)
- 0.1 एकड़ – मोरिंगा / सुबबुल (पेड़ चारा)
- 0.1 एकड़ – सूखे चारे हेतु धान की पराली भंडारण
इससे पूरे साल संतुलित चारा मिलता है और बाजार पर निर्भरता घटती है।
🧪 8. चारा समृद्धि हेतु सरल जैव तकनीकें
- अजैविक उर्वरक के स्थान पर जैविक खाद: गोबर, गोमूत्र, नीम खली, और वर्मी कंपोस्ट।
- बीज उपचार: राइजोबियम कल्चर से बीज उपचार करने से जड़ों में नाइट्रोजन फिक्सेशन बढ़ता है।
- मल्चिंग तकनीक: मिट्टी में नमी बनाए रखने के लिए जैविक आवरण का प्रयोग।
- ड्रिप सिंचाई: जल की बचत और पोषक तत्वों की समान आपूर्ति।
📉 9. लागत घटाने के व्यावहारिक उपाय
- स्थानीय बीज और देसी नस्लों को प्राथमिकता दें।
- पशुओं की संख्या क्षेत्र और चारा क्षमता के अनुसार रखें।
- रोटेशनल ग्रेज़िंग (चारागाह बदल-बदलकर चराना) अपनाएँ।
- चारा फसलों के साथ दलहनी फसलों का मिश्रण करें ताकि मिट्टी में नाइट्रोजन बढ़े।
- भूसा या पराली जलाने के बजाय उसका उपयोग चारे में करें।
🌍 10. सरकारी योजनाएँ और प्रशिक्षण
भारत सरकार और राज्य पशुपालन विभाग किसानों को चारा उत्पादन हेतु कई योजनाएँ प्रदान करते हैं।
- RKVY (राष्ट्रीय कृषि विकास योजना): चारा बीज और साइलेंज यूनिट के लिए सब्सिडी।
- NABARD फॉडर प्रोजेक्ट: स्वयं सहायता समूहों को चारा प्रसंस्करण यूनिट हेतु ऋण।
- NDDB प्रशिक्षण: डेयरी फार्मिंग व साइलेंज निर्माण पर प्रशिक्षण कार्यक्रम।
- कृषि विज्ञान केंद्र (KVK): स्थानीय किसानों के लिए फॉडर डेमो प्लॉट्स।
हर किसान को नजदीकी KVK या पशुपालन विभाग से संपर्क कर ये योजनाएँ अपनानी चाहिए।
🌾 11. भविष्य की दिशा – “चारा आत्मनिर्भरता मिशन”
भविष्य में हर गांव को “चारा आत्मनिर्भर गांव” बनाना जरूरी है। इसके लिए पंचायत स्तर पर सामूहिक चारागाह विकसित किए जा सकते हैं।
- पंचायत भूमि पर नेपियर, सुबबुल, और बरसीम का उत्पादन।
- गौशालाओं में साइलेंज टैंक और हाइड्रोपोनिक यूनिट लगाना।
- युवाओं को फॉडर उत्पादन के व्यवसाय से जोड़ना।
इससे रोजगार भी बढ़ेगा और दूध उत्पादन में स्थिरता आएगी।
🔚 निष्कर्ष
आज पशुपालन तभी लाभकारी बन सकता है जब किसान स्वयं चारा उत्पादन में आत्मनिर्भर बने। वैकल्पिक तकनीकें – जैसे साइलेंज, हाइड्रोपोनिक, और मोरिंगा/सुबबुल आधारित मॉडल – न केवल सस्ती हैं बल्कि पर्यावरण के अनुकूल भी हैं।
हर किसान को यह समझना होगा कि “जब चारा सस्ता, तभी दूध सस्ता”। इसलिए छोटे स्तर से शुरुआत करें और धीरे-धीरे चारा आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ें।
✍️ लेखक: डॉ. मुकेश स्वामी (पशु चिकित्सक, समाजसेवी एवं संस्थापक – Pashupalan.co.in)