गोबर गैस प्लांट लगाने की सम्पूर्ण गाइड – ऊर्जा और खाद का स्वदेशी समाधान
गोबर गैस प्लांट – ऊर्जा और खाद दोनों का समाधान
पशुपालन केवल दूध उत्पादन का साधन नहीं है, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था की नींव भी है। हर गाय-भैंस प्रतिदिन औसतन 10–15 किलो गोबर देती है। यदि इस गोबर का सही उपयोग किया जाए तो यह न सिर्फ पर्यावरण को स्वच्छ रखता है बल्कि किसान को ऊर्जा और जैविक खाद दोनों के रूप में दोहरा लाभ देता है।
आज जब पेट्रोल-डीज़ल और रसोई गैस की कीमतें बढ़ रही हैं, तब गोबर गैस प्लांट एक सस्ता, टिकाऊ और स्वदेशी विकल्प बनकर उभरा है। यह न केवल घरेलू ऊर्जा का स्रोत है बल्कि पर्यावरण संरक्षण और जलवायु परिवर्तन रोकने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
1. गोबर गैस क्या है और यह कैसे बनती है?
गोबर गैस (Biogas) एक मिश्रण है जिसमें मुख्य रूप से मीथेन (CH₄) और कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) होती है। यह गैस तब बनती है जब गोबर और अन्य जैविक पदार्थ ऑक्सीजन रहित वातावरण (anaerobic condition) में सड़ते हैं। इस प्रक्रिया को एनएरोबिक डाइजेशन कहा जाता है।
एक साधारण गोबर गैस प्लांट में चार मुख्य हिस्से होते हैं:
- मिश्रण टैंक – जहाँ गोबर और पानी का घोल तैयार किया जाता है।
- डाइजेस्टर टैंक – जहाँ गैस उत्पादन की प्रक्रिया होती है।
- गैस भंडारण गुंबद – जिसमें गैस जमा होती है।
- आउटलेट स्लरी टैंक – जहाँ से गैस बनने के बाद बचा हुआ मिश्रण निकलता है।
हर 25 किलो गोबर से लगभग 1 घन मीटर गैस बनती है, जो एक परिवार की एक दिन की रसोई जरूरत पूरी कर सकती है।
2. गोबर गैस के प्रमुख घटक और ऊर्जा क्षमता
गोबर गैस में औसतन 50–60% मीथेन होती है जो ज्वलनशील गैस है। बाक़ी हिस्से में CO₂, हाइड्रोजन, नाइट्रोजन और सल्फाइड गैसें शामिल होती हैं। मीथेन ही वह तत्व है जो इस गैस को जलाकर ऊष्मा या बिजली में बदलने योग्य बनाता है।
1 घन मीटर बायोगैस लगभग:
- 0.43 लीटर पेट्रोल के बराबर ऊर्जा देता है।
- 3 घंटे तक गैस चूल्हा जलाने के लिए पर्याप्त है।
- 1 यूनिट बिजली (kWh) उत्पन्न कर सकता है।
3. गोबर गैस प्लांट के प्रकार
भारत में दो प्रमुख प्रकार के बायोगैस प्लांट उपयोग में हैं:
1️⃣ फिक्स्ड डोम टाइप (Deenbandhu Model)
यह सबसे लोकप्रिय मॉडल है। इसमें डाइजेस्टर टैंक और गैस गुंबद दोनों ईंट-सीमेंट से बने होते हैं। इसका रख-रखाव कम और आयु लगभग 20 साल होती है।
2️⃣ फ्लोटिंग ड्रम टाइप (KVIC Model)
इस मॉडल में लोहे का ड्रम गैस के साथ ऊपर-नीचे होता है। गैस के निकलने पर ड्रम नीचे बैठ जाता है। यह थोड़ा महंगा लेकिन गैस दबाव नियंत्रित रखने में उपयोगी है।
अब कई कंपनियाँ फाइबर या प्लास्टिक प्री-फैब्रिकेटेड बायोगैस टैंक भी बना रही हैं जो इंस्टॉलेशन में आसान हैं।
4. गोबर गैस प्लांट लगाने के लाभ
1️⃣ घरेलू ऊर्जा की बचत
एक 2 घन मीटर का प्लांट 4-5 सदस्यों के परिवार की रसोई गैस पूरी तरह बदल सकता है। इससे LPG पर होने वाला खर्च लगभग ₹700-1000 प्रति माह तक बचाया जा सकता है।
2️⃣ जैविक खाद का उत्पादन
गोबर गैस बनने के बाद जो स्लरी निकलती है, वह अत्यंत पौष्टिक जैविक खाद होती है। इसमें नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटैशियम की मात्रा अधिक होती है। यह रासायनिक खाद की तुलना में सस्ती और मिट्टी के लिए लाभदायक है।
3️⃣ दुर्गंध और मक्खियों से मुक्ति
खुले में गोबर फेंकने से वातावरण दूषित होता है और मक्खियाँ फैलती हैं। बायोगैस प्लांट में यही गोबर बंद टैंक में उपयोग हो जाता है, जिससे साफ-सफाई बनी रहती है।
4️⃣ जलवायु परिवर्तन में योगदान
मीथेन एक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है। जब इसे नियंत्रित रूप में उपयोग किया जाता है तो यह पर्यावरण को प्रदूषित करने के बजाय ऊर्जा का स्रोत बनती है।
5️⃣ पशुपालकों के लिए अतिरिक्त आय
यदि गाँव में सामूहिक बायोगैस यूनिट लगाई जाए तो उससे उत्पन्न गैस बेचकर या खाद की बिक्री से आय अर्जित की जा सकती है।
5. लागत और सरकारी सहायता
भारत सरकार के न्यू नेशनल बायोगैस एंड ऑर्गेनिक मैन्योर प्रोग्राम (NNBOMP) के तहत छोटे किसानों को गोबर गैस प्लांट लगाने पर सब्सिडी दी जाती है।
- 1–2 घन मीटर क्षमता वाले प्लांट पर ₹7500–₹9000 तक सब्सिडी।
- ST/SC, महिला या सीमांत किसान श्रेणी में अतिरिक्त सहायता।
- राज्य-वार विभाग (जैसे राजस्थान में नवीकरणीय ऊर्जा निगम) के माध्यम से आवेदन किया जा सकता है।
सामान्यतया 2 घन मीटर क्षमता वाले प्लांट की कुल लागत लगभग ₹25,000–₹30,000 आती है, जिसमें 2–3 पशुओं का गोबर पर्याप्त होता है।
6. गोबर गैस का बहुउपयोग
गोबर गैस सिर्फ चूल्हे तक सीमित नहीं है। इसका उपयोग कई रूपों में किया जा सकता है:
- बिजली उत्पादन के लिए बायोगैस जनरेटर।
- सड़क लाइटिंग (ग्राम पंचायत प्रोजेक्ट)।
- ट्रैक्टर या इंजन चलाने के लिए बायो-CNG रूपांतरण।
- डेयरी या मिल्क चिलिंग यूनिट में बिजली आपूर्ति।
कई स्थानों पर बायोगैस को कम्प्रेस कर सिलिंडर में भरकर “गौ-CNG” के रूप में भी प्रयोग किया जा रहा है।
7. रख-रखाव और सावधानियाँ
- डाइजेस्टर में नियमित रूप से गोबर-पानी मिश्रण डालते रहें।
- प्लांट को सीधी धूप में रखें ताकि तापमान 30–40°C रहे।
- तेल, साबुन या प्लास्टिक जैसी वस्तुएँ कभी न डालें।
- हर 2–3 महीने में आउटलेट स्लरी टैंक की सफाई करें।
- गैस पाइपलाइन में लीकेज की जांच करें।
8. सामूहिक बायोगैस मॉडल – गाँव की आत्मनिर्भरता
कई गाँवों में अब सामूहिक बायोगैस प्लांट लगाए जा रहे हैं, जहाँ 20–25 परिवारों का गोबर मिलकर 100–150 किग्रा गैस प्रतिदिन उत्पन्न करता है। इससे गाँव में सामुदायिक रसोई, लाइटिंग और खाद उत्पादन एक साथ संभव हो गया है।
इस तरह के मॉडल आत्मनिर्भर भारत की दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं — जहाँ कचरा, गोबर और जैविक पदार्थ सब संसाधन में बदल जाते हैं।
9. पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभाव
- कार्बन उत्सर्जन में कमी।
- महिलाओं का रसोई कार्य आसान हुआ।
- गाँव में स्वच्छता और स्वास्थ्य में सुधार।
- मिट्टी की उर्वरता और जल संरक्षण में वृद्धि।
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्टों के अनुसार, बायोगैस प्रोजेक्ट ग्रामीण भारत में सतत विकास लक्ष्यों (SDG 7 और SDG 13) की पूर्ति में सहायक हैं।
10. निष्कर्ष
गोबर गैस प्लांट केवल ऊर्जा का साधन नहीं बल्कि एक सम्पूर्ण ग्रामीण विकास मॉडल है। इससे किसान LPG और बिजली पर निर्भरता घटा सकता है, खेतों में जैविक खाद उपयोग कर मिट्टी सुधार सकता है, और पर्यावरण को सुरक्षित रख सकता है।
हर पशुपालक को चाहिए कि वह कम-से-कम 1–2 पशुओं के गोबर का उपयोग कर एक छोटा घरेलू प्लांट बनाए। इससे “गोबर से सोना” बनाने की परंपरा फिर जीवित होगी।
लेखक: पशुपालन टीम | स्रोत: Pashupalan.co.in