डेयरी फार्म की स्वच्छता और रोग नियंत्रण – पशुपालकों के लिए सम्पूर्ण मार्गदर्शिका
डेयरी फार्म में स्वच्छता और रोग नियंत्रण के उपाय
भारत दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश है, लेकिन दूध उत्पादन की गुणवत्ता और स्थिरता काफी हद तक डेयरी फार्म की स्वच्छता और पशु स्वास्थ्य प्रबंधन पर निर्भर करती है। यदि फार्म साफ-सुथरा नहीं रखा जाए तो रोग तेजी से फैलते हैं, दूध दूषित हो जाता है और उत्पादन घट जाता है। इसीलिए डेयरी फार्मिंग में स्वच्छता और रोग नियंत्रण एक साथ चलने वाली दो मूलभूत ज़रूरतें हैं।
इस ब्लॉग में हम जानेंगे कि एक साधारण किसान या डेयरी मालिक किन उपायों से अपने पशुओं को स्वस्थ रख सकता है, फार्म को स्वच्छ बना सकता है, और उत्पादन में निरंतर वृद्धि कर सकता है।
1. डेयरी फार्म में स्वच्छता क्यों आवश्यक है?
पशुओं के रहने की जगह यदि गंदी हो तो वहाँ बैक्टीरिया, फफूंदी, मक्खी-मच्छर और परजीवी तेजी से पनपते हैं। ये रोग जैसे मास्टाइटिस, फुट रोट, स्किन इंफेक्शन, और डायरिया का कारण बनते हैं। साफ वातावरण पशुओं को तनाव-मुक्त रखता है, जिससे उनका पाचन, प्रजनन और दूध उत्पादन सभी पर सकारात्मक असर पड़ता है।
2. साफ-सुथरा शेड डिज़ाइन
डेयरी शेड का डिज़ाइन ऐसा होना चाहिए कि उसमें हवा का संचार अच्छा रहे और बरसात का पानी जमा न हो।
- शेड की छत ढलान वाली हो ताकि वर्षा का पानी बाहर निकल जाए।
- फर्श सीमेंटेड और थोड़ा ढलवा हो ताकि गोबर-गंदगी स्वतः बह सके।
- प्रत्येक पशु के लिए कम से कम 30–40 वर्ग फुट जगह होनी चाहिए।
- प्रकाश और हवा के लिए वेंटिलेशन अनिवार्य है।
3. सफाई की दैनिक दिनचर्या
स्वच्छता केवल सप्ताह में एक बार सफाई करने से नहीं आती। इसके लिए दैनिक दिनचर्या बनानी जरूरी है:
- सुबह और शाम दूध दुहने से पहले फर्श की सफाई करें।
- पशु को दुहने से पहले और बाद में थन को गुनगुने पानी और एंटीसेप्टिक से धोएं।
- गोबर को तुरंत बाहर निकालें और खाद गड्ढे में डालें।
- मक्खी नियंत्रण के लिए नीम का छिड़काव या फेनाइल का उपयोग करें।
- सप्ताह में एक दिन पूरे शेड की धुलाई और धूप-संक्रमण करें।
4. रोग नियंत्रण की बुनियादी नीति
रोग नियंत्रण के लिए “रोकथाम इलाज से बेहतर है” नीति अपनाएँ। यदि पशु बीमार पड़ जाए तो न केवल उसका उत्पादन रुकता है बल्कि संक्रमण दूसरे पशुओं में भी फैल सकता है।
निम्नलिखित बातें हमेशा याद रखें:
- नए पशु को खरीदने पर पहले 15 दिन अलग बाड़े (quarantine) में रखें।
- हर पशु का टीकाकरण रजिस्टर बनाएँ।
- समय-समय पर डिवार्मिंग (कृमिनाशन) करें।
- थन की सूजन (मास्टाइटिस) के लिए नियमित जांच करें।
- सर्दी-गर्मी के अनुसार आहार में बदलाव करें ताकि रोग प्रतिरोधक क्षमता बनी रहे।
5. मास्टाइटिस से बचाव के उपाय
मास्टाइटिस (थन की सूजन) दूधारू पशुओं में सबसे आम और खतरनाक रोग है। इसकी रोकथाम के लिए:
- दूध दुहने से पहले हाथ और थन को धोएँ।
- पहला दूध फेंक दें क्योंकि उसमें जीवाणु हो सकते हैं।
- दूध दुहने के बाद थन पर पोविडोन आयोडीन से डिसइन्फेक्ट करें।
- थन को चोट या गंदगी से बचाएँ।
- साफ सूती कपड़े या डिस्पोजेबल नैपकिन का प्रयोग करें।
6. मक्खी और परजीवी नियंत्रण
गर्मी और बरसात में मक्खियाँ और जूं रोग फैलाने में सबसे बड़ी भूमिका निभाती हैं।
- फार्म में गौ-गोबर पिट को ढँककर रखें।
- मक्खी-रोधी जाल लगाएँ।
- नीम या लेमनग्रास के तेल का छिड़काव करें।
- पशु के शरीर पर सप्ताह में एक बार फिनाइल या कीटनाशक स्प्रे करें।
7. दूध निकालने की स्वच्छ प्रक्रिया
दूध दुहना एक संवेदनशील प्रक्रिया है। यहाँ की गलती सीधे उपभोक्ता तक रोग पहुँचा सकती है।
- दूध दुहने वाले बर्तन स्टील के हों, रोज़ धोकर धूप में सुखाएँ।
- दूध को हाथ से न छुएँ, सीधे बर्तन में गिरने दें।
- दूध निकालने के तुरंत बाद उसे ठंडा करें (चिलिंग टैंक या बर्फ से)।
- फार्म परिसर में धूम्रपान या गंदे कपड़ों में प्रवेश वर्जित रखें।
8. पानी और चारे की स्वच्छता
अक्सर रोग पानी या आहार के माध्यम से फैलते हैं। इसलिए:
- पशुओं को साफ और ठंडा पानी दें।
- चरनी और बाल्टी रोज़ साफ करें।
- चारे को सूखी जगह रखें ताकि उसमें फफूंदी न लगे।
- साइलेंज या भूसे को नमी से बचाएँ।
9. कर्मचारियों की ट्रेनिंग और अनुशासन
कई बार रोग पशु से नहीं बल्कि कर्मचारियों की लापरवाही से फैलते हैं। इसलिए:
- हर कर्मचारी को स्वच्छता प्रशिक्षण दें।
- काम पर साफ कपड़े और बूट अनिवार्य करें।
- बीमार कर्मचारी को पशुओं से दूर रखें।
- सुरक्षा के लिए दस्ताने, मास्क और हैंडवॉश का प्रयोग करें।
10. वैक्सीन शेड्यूल का पालन
रोग नियंत्रण का सबसे कारगर तरीका टीकाकरण है। प्रमुख टीकों में शामिल हैं:
- FMD (मुंह-खुर रोग) – हर 6 माह में।
- HS (हैमोरेजिक सेप्टिसीमिया) – साल में एक बार।
- Black Quarter – साल में एक बार।
- Brucellosis (मादा बछड़ों में) – एक बार 6–8 माह की उम्र में।
टीकाकरण के समय पशु को खाली पेट रखें और गर्मी या बारिश के दिनों में टीका लगाने से बचें।
11. रोग की प्रारंभिक पहचान
रोग को बढ़ने से पहले पहचान लेना सबसे जरूरी है। कुछ संकेत इस प्रकार हैं:
- पशु का अचानक दूध कम देना।
- भूख न लगना या बार-बार लेटना।
- नाक या आँख से स्राव।
- बुखार या शरीर का ठंडा होना।
- थन या पैरों में सूजन।
इनमें से कोई भी लक्षण दिखे तो तुरंत स्थानीय पशु चिकित्सक को दिखाएँ।
12. रोग फैलने की स्थिति में क्या करें?
- बीमार पशु को तुरंत अलग बाड़े में रखें।
- उसके संपर्क में आने वाले उपकरणों को डिसइन्फेक्ट करें।
- दूध को उपयोग में न लाएँ।
- वेटरनरी अधिकारी को सूचना दें।
- शेड और फर्श पर चूने का छिड़काव करें।
13. पर्यावरणीय स्वच्छता और कचरा प्रबंधन
गोबर और मूत्र को गड्ढे में डालकर बायोगैस या जैविक खाद बनाएं। इससे दुर्गंध भी नहीं होगी और पर्यावरण प्रदूषण भी घटेगा। शेड के आसपास नीम, तुलसी, मोगरा, लेमनग्रास जैसे पौधे लगाएँ जो प्राकृतिक रूप से हवा शुद्ध करते हैं।
14. निष्कर्ष
डेयरी फार्म की सफलता का सीधा संबंध उसकी स्वच्छता से है। साफ वातावरण, स्वच्छ पानी, संतुलित आहार, और नियमित टीकाकरण — यही चार स्तंभ हैं जो किसी भी पशुपालक को लंबे समय तक स्वस्थ और उत्पादक पशु प्रदान कर सकते हैं।
स्वच्छता केवल एक आदत नहीं बल्कि पशुपालन की संस्कृति होनी चाहिए। जब किसान इसे अपनाएगा, तभी “स्मार्ट डेयरी फार्मिंग” का सपना सच होगा।
लेखक: पशुपालन टीम | स्रोत: Pashupalan.co.in